Saturday, September 27, 2008

एक और ब्लास्ट, धुआ चीख पुकार।

एक और ब्लास्ट, धुआ चीख पुकार।

दिल्ली पुलिस ,इंटेलिजेंस अब ये शब्द बेमानी लगने लगे है।आंतकवादियों ने महरौली मे विस्फोट कर पूरे सुरक्षा तंत्र पर प्रश्न चिहन लगा दिया।डडवाल जो कि हमारे देश की राजधानी के पुलिस आयुक्त है मात्र कठपुतली बनकर रह गये है,स्कुल मे गल्ती करने पर सजा का प्रावधान होता है,लेकिन इनको कौन सी सजा दी जाएं।कल भगत सिंह की 101वीं जन्मशती शुरू हुई और कल विस्फोट हुआ।उनकी आत्मा को कितना कोफ्त हो रहा होगा आजादी के बाद के भारत का स्वरूप इतना वीभत्स हो जाएगा।नेता हो अधिकारी हो सभी की भुमिकाएं गौण हो चुकी है।कुल मिलाकर स्थिती क्या करें क्या क्या न करे ये कैसी मुश्किल हाय।संतोष नाम का लड़का जो इस हादसे मे मारा गया ,भले ही आगे चलकर कुछ भी करता,लेकिन शायद गरीबी से जुझते अपने परिवार को सरकारी मदद दिलाकर अपने को अमर कर गया ।जैसा कि संतोष का परिवार एक गरीब परिवार है दो जून की रोटी बड़ी मुश्किल से जुटा पाता था।प्रदेश सरकार की 5 लाख रूपी आर्थिक सहायता संतोष को घर का सबसे बड़ा मुखिया बना गयी।

विस्फोट के दो हफ्ते ही बीते थे कि आतंकवादियों ने दीवाली से पहले सिलसिलेवार विस्फोट कर ये बत दिया कि वो कितने बेखौफ हो गये है।देश का दिल कही जाने वाली दिल्ली अब किसी भी लिहाज से सुरक्षित नही।जब देश की राजधानी की ये हालत है और शहरो का हाल छोड़िये।ब्लास्ट के बाद अगर कोई उल्लेखनीय परिवर्तन दिखा तो वो ये कि हमारे गृह मंत्री श्री श्री कोटि-2 वंदनीय पाटिल जी कपड़ा नही बदले हां बाल अच्छे सेट थे।थोड़ी देर के लिए ही सही दिखे मगर कोई बयान न देकर ये साबित किया मैं सबसे कमजोर मंत्री हूं मेरे पास कोइ नीति या योजना नही।मुंह चुराते हुए निकल लिए।धन्य हो पाटिल जी इतिहास आपको याद रखेगा।

शब्द खत्म हो गए है बयां क्या करु। मौत के बाजार मे जिंदगी सिसकती है दुबकी कोने पर बैठी जिदंगी का क्या करु। फिर भी कुवंर बैचेन की ये उदारवादी पंक्तियां सभी की ये भावना हो,

सबकी बात न माना कर , खुद को भी पहचाना कर

दुनिया से लडना है तो , अपनी ओर निशाना कर

या तो मुझसे आकर मिल , या मुझको दीवाना कर

बारिश में औरों पर भी , अपनी छतरी ताना कर


बाहर दिल की बात न ला, दिल को भी तहखाना कर

शहरों में हलचल ही रख, मत इनको वीराना कर

Wednesday, September 17, 2008

लाचार सरकार ,पंगु व्यवस्था—हम अवतार के इंतजार मे।

लाचार सरकार ,पंगु व्यवस्थाहम अवतार के इंतजार मे।

हम भारत वासी गीता को कर्म करने के संदेश के रुप मे देखते है।अपराध और पाप बढ़ रहे है गीता के अनुसार सही वक्त अवतार के जन्म लेने का ।दिल्ली विस्फोट के बाद की

स्थिती हमारी खुफिया तंत्र को नंगा कर देती है।ये ठीक उसी तरह दिखती है जैसे कोइ जर्जर शरीर किसी सहारे के इंतजार मे हो।विस्फोट के बाद सामान्य होती जिंदगी जिसको हम अपना हैसला मानते है सही है।सामान्य होना शायद हमारी मजबूरी है।सेठ जी का बैंक बैंलेस तो उन्हें कई साल तक बैठे खिला देगा।लेकिन वो तबका जिसने अपना अगला पल भी सुनियोजित नही किया है उसे तो अपनी जान पे खेल कर अपने पेट की आग को शांत करना पड़ेगा यही वो लोग है जिसकी वजह से हम कह देते है, हमारा हौसला देखो हर सुबह आम होती है। ये आईटी एक्सपर्ट जिन्हें हमी ने तैयार किया आज भस्मासुर बने है।लेकिन हम भी आस लगाये बैठे है कि एक दिन खुद ही सिर पर हाथ रखकर ये भस्म हो जाएं।सरकार के पास तीन शब्द जो तरकश मे हमेशा रहते है हमने देखा, देख रहे है, देखेंगे कहकर इस कहावत को चरितार्थ कर दिया है (पड़ोसी मुल्क के लिए)क्षमा बड़न के चाहिए छोटन को उत्पात।

Monday, September 15, 2008